भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि का घर / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 20 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन खिड़कियों पर कभी यहाँ साँसें थी,
कुछ पकने की ख़ुशबू और आईने में वही चेहरा था।
अब यह अजायबघर है।
फ़र्श पर उगे फूल-बूटे उखाड़ दिए गए हैं,
सूटकेस ख़ाली कर दिए गए हैं
और कमरों पर लाख चढ़ा दी गई है।
खिड़कियाँ दिन-रात के लिए खुली छोड़ दी गई हैं।
चूहे इस निर्वात घर से दूर रहते हैं।

बिस्तर करीने से सजा है।
पर यहाँ कोई एक रात भी नहीं बसर करता।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार