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अनौठो आनन्द / मनप्रसाद सुब्बा

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दुनियाँले देख्ला कि भनी
लुकाइराखेको
संसारले निन्दा गर्ला कि भनी
नदेखाइराखेको
मेरो निजी कमजोरी
आज तिम्रो सामुन्ने उदाङ्गो राखिदिएँ

अनि आह !
यस क्षण
यौटा अनौठो आनन्दले म
कता हो कता माथि उठेको छु –
यौटा निक्खुर जिन्दगी बाँच्नुको आनन्द !