भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोरोॅ याद / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरोॅ याद नै आबै छै;
आबेॅ तेॅ तोरोॅ यादो नै आबै छै!
कामोॅ के मेला में असकरुवोॅपन खलै नै छै;
पूर्णिमा राती में चाँन भी जलै नै छै,
सपना के रंगीनी होय गेलै सपना रं,
हेरैलोॅ भावुकता होय गेलै अपना रं;
सुनै छियै जिनगी में सबकुछ कर्त्तव्ये छै
भान भी होय छै
सोचै छियै कभी-कभी कैहने ई होय छै?
प्रेमोॅ के परिभाषा बदलै छै छन्है-छन्है!
देखोॅनी-
जूही के जङलोॅ में भमरा के मेला छै
तेकरा पर बिरही ई जिनगी अकेला छै
अतरज छै-
वीण कहाँ बाजै छै?
राग कहाँ लहरै छै?
की कहभेॅ तोंहें पर
सच्चे-सच बोलै छीं
गीतो नै गाबै छीं प्रीत के!