बालिग गणतंत्र / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
गहूमोॅ खेतोॅ के तितलोॅ हवा, बँसबारी के पोर
ठारी पर कठुवैलोॅ चिरै-चूरगुने करै लागलै शोर
”आपनोॅ छै राजपाट, आपनोॅ छै तंत्र
द्वारी पर खाढ़ोॅ छै बालिग गणतंत्र।
सुरजोॅ के रथ चढ़ी ऐलोॅ छै
नया-पुरानोॅ मंत्र पढ़ी ऐलोॅ छै
गाँधी के रामराज एक तरफ राखी केॅ
सम-समाज पंथ गढ़ी ऐलोॅ छै।
नारा छै गरीबी हाटबै के
नारा छै अमीरी घटाबै के
नारा छै सुखी हुअेॅ आदमी
कि नारा छै नारा बढ़ाबै के?
भरसक कोय नया नारा आय्यो छै झोली में
फेकतै बस ताकी केॅ भीड़ोॅ में घोली में
सिरा-सिरा झनकारी उठतै यै देश के
नै-नै-नै गलत भेलै-उप महादेश के।
बस फेरु वहेॅ चाल, वहेॅ रंग, वहेॅ रूप
काल्हू सें वहेॅ बोॅव, वह छाँह, वहेॅ धूप।
दू टुकड़ा रोटी लेॅ मँडरैतै आदमी
संगी के बोटी लेॅ मँडरैतै आदमी
भाषा के नामोॅ पर, पार्टी के कामोॅ पर
रेल-ट्राम-बस-जहाज झुलसैतै आदमी।
राष्ट्र के सम्पत्ति रेल छै?
बस-जहाज-ट्राम-ट्रक-जेल छै?
फिः! ई सब भरमाबै के रास्ता
माने की आँखी में धुरदा के खेल छै।
”जेकरोॅ ई गद्दा छै ओकरे सब घाटा छै
ओकरे सब नोन-दाल ओकरे सब आँटा छै”
यहेॅ पाठ पढ़तै सब आदमी जन-गन-मन;
राष्ट्र कहाँ? बलदानी पाठा छै!
आय भरी फहराबोॅ तिनरंगा
एक करोॅ नदी-नार-गंगा
दोहराबोॅ वहेॅ प्रण, वहेॅ राग, वहेॅ भास
कल सें तेॅ नाँचन्हायँ छौं नंगा।
आपनोॅ छौं राज-पाट आपनोॅ छौं तंत्र
टुकुर-टुकुर ताकै छौं बालिग गणतंत्र!