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उनकी आदत बुलंदियों वाली / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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उनकी आदत बुलंदियों वाली

अपनी सीरत है सीढ़ियों वाली


हमको नदियों के बीच रहना है

अपनी क़िस्मत है कश्तियों वाली


ज़िन्दगी के भँवर सुनाएँगे

अब कहानी वो साहिलों वाली


हम पे कुछ भी लिखा नहीं जाता

अपनी क़िस्मत है हाशियों वाली


भूखे बच्चे को माँ ने दी रोटी

चंदा मामा की लोरियों वाली


आज फिर खो गई है दफ़्तर में

तेरी अर्ज़ी शिकायतों वाली


तू भी फँसता है रोज़ जालों में

हाय क़िस्मत ये मछलियों वाली


तू इसे सुन सके अगर, तो सुन

यह कहानी है क़ाफ़िलों वाली


वो ज़बाँ उनको कैसे रास आती

वो ज़बाँ थी बग़ावतों वाली


भूल जाते, मगर नहीं भूले

अपनी बोली महब्बतों वाली