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हाँफ़ता दिल में फ़साना और है / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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हाँफ़ता दिल में फ़साना और है

काँपता लब पर तराना और है


जुगनुओं—सा टिमटिमाना और है

पर दिए-सा जगमगाना और है


बैठ कर हँसना —हँसाना और है

नफ़रतों के गुल खिलाना और है


कुछ नए सिक़्क़े चलाना और है

और फिर उनको भुनाना और है


मार कर ठोकर गिराना और है

जो गिरें, उनको उठाना और है


ठीक है चलना पुरानी राह पर

हाँ, नई राहें बनाना और है


जो गया बीता न उसकी बात कर

आजकल यूँ भी ज़माना और है


ज़ात में अपनी सिमटना है जुदा

ख़ुशबुओं—सा फैल जाना और है


‘द्विज’ ! अकेले सोचना—लिखना अलग

बैठकर सुनना—सुनाना और है