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मैं आवारा बादल (गीत) / प्रमोद तिवारी

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मैं आवारा बादल
कोई रोके
तो मैं बरसूँ
वरना दुनिया
मुझको तरसे
मैं दुनिया को तरसूँ

मुझसे हवा मिली
तो बोली
देखो! हम-तुम
हैं हमजोली
आओ! झूमें, नाचंे, गायें
पर्वत की
चोटी तक जायें
मैं उसकी बातों में आया
पर्वत से जाकर टकराया
बूंद-बूंद बन
बिखर रहा हूँ
फिर धरती पर
उतर रहा हूँ
छोड़ो अब तो
बंजरपन अपना
मैं हरियाली परसूँ ...

पर्वत से क्यों
टकराया था
उस पर अहंकार
छाया था
बोला, रुको!
कहीं मत जाओ
केवल मुझको
ही नहलाओ
मैंने उसकी
एक न मानी
काया कर ली
पानी-पानी
पानी, नदियों में
तालों में
पानी, आँखों में
प्यालों में
फिर भी प्यास
नहीं बुझ पाई
तुम तरसो
मैं तरसूँ...

धरती ने
आरोप लगाया
मेरे घर तू
कभी न आया
केवल सर पर ही
मंडराया
ऊपर से गरजा-गुर्राया
सच है
रूप-रंग जब-तक है
सारा मौसम
नत् मस्तक है
पर जो प्यार
किया करते हैं
तानें नहीं दिया करते हैं
इसीलिए मैं-
गरजूँ तुझ पर
तुझ-पर ही
मैं बरसूँ...