भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसा है वैसा स्वीकारो / प्रमोद तिवारी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:46, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसा है वैसा स्वीकारो
तब तो कोई बात बने
वरना रीढ़ टूट जायेगी
अकड़े-अकड़े
तने-तने

थोड़ा अगर
ध्यान से देखो
किसने आग लगाई है
कोई और नहीं है
तेरी अपनी ही
परछाईं है
तेरी ही
माया के कीचड़
में हैं तेरे
पांव सने

या तो अपनी
राह बनाओ
दुनिया छोड़ो
साधो मौन
या फिर भेड़ चाल में
शामिल होकर
मत सोचो हो कौन...?
तुम भी
पुए-गुलगुले बांटो
बांझ कोख
जब पूत जने

जब-तक चिड़िया
चोंच मार कर
फेंके नहीं
घोंसले से
तब-तकचूजा
पंख खोलकर
उड़ता नहीं हौसले से
चोंच मारना
जब हिंसा हो
तो चिड़िया की
कौन सुने