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पुरवा छेड़े चोट पुरानी / प्रमोद तिवारी

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लगती है जानी पहचानी
पुरवा छेड़े चोट पुरानी

चोट कि जिसका
धुँधला दर्पण
अनुमानित
प्रतिबिम्ब दिखाये
कोई दूर गाँव के पीछे
खट्टे-मीट्ठे बेर चखाये
छेड़ो नहीं
याद आने दो
भूली बिसरी
एक कहानी

देख रहा हूँ
एक पखेरू
अपने पंखों को
फैला के
घाटी से
पर्वत को देखे
पर्वत से
घाटी में झाँके
कितनी जीती
कितनी हारी
कितनी प्यारी
शाम सुहानी
थोड़ी देर और ऐसे ही
रोके रहो समय के पहिये
जो कुछ भी सुनना है
सुनिए
कुछ भी नहीं
किसी से कहिए
सिंहासन के पास खड़े हैं
हाथ पसारे
राजा रानी