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तुम कहते हो गीत सुनाओ / प्रमोद तिवारी

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तुम कहते हो गीत सुनाओ
तुमको यह अनुमान नहीं है
असफल प्रणय कथा
सुन पाना इतना तो
आसान नहीं है

तुम तो एक तमाशाई हो
मुझको एक तमाशा मानो
दाह छुपाकर गाने वाले
क्षण का
भोरीपन क्या जानो
जब कोई टूटा है सपना
मुझसे हुई
गीत की रचना
मैं कबीर पंथी हूँ
मुझको
भले बुरे का ज्ञान नहीं है

मुझे तैरना
कभी न भाया
भाया है गहराई गहना
इसीलिए तो
जान न पाया
बसना और उजड़ना अपना
लिख पाया
जैसे लिख पाया
जैसे गा पाया
गाया है
सबको रुचे
ज़रूरी क्या है
मेरा गीत विधान नहीं है

तन, मन, धन
यश या अपयश की
यूं मुझको
परवाह नहीं है
लेकिन मथे हुए सागर से
केवल विष की
चाह नहीं है
मौके, बेमौके रोना है
हंस-हंस कर
इतना कहना है
सब कुछ है
इस भरे भाग्य में
केवल रोशनदान नहीं है