भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी निहारेगा कोई मुझको / प्रमोद तिवारी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इसी आस में
जीवन बीतेगा
अभी निहारेगा
कोई मुझको

टूट गये जन्मों के रिश्ते
पल भर में
हँसते ही हँसते
वैसे तो सच है
लेकिन विश्वास नहीं होता
आँखें भर आतीं
जब कोई पास नहीं होता
ज़रा संभालो
दरपन टूटे ना
अभी संवारेगा
कोई मुझको

एक था राजा
एक थी रानी
दोनों बिछुड़े
खतम कहानी
बचपन में इस सुनी कथा का
अर्थ नहीं जाना
किन्तु आज इसमें पाया
अपना ताना बाना
फिर भी पल-पल
मुड़-मुड़ देखा है
अभी पुकारेगा कोई मुझको