Last modified on 23 जनवरी 2017, at 13:01

महानगर की सड़कों पर तनकर / प्रमोद तिवारी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

महानगर की सड़कों पर
तनकर चलने में
अपने ही भीतर हम
घुटनों तक झुके हुए

कहने को एक नहीं
कई-कई रिश्ते हैं
चढ़े हुए दरिया पर
पुल जैसे बिछते हैं
होंठों के हिले बिना
कीमत लग जाती है
आंखों ही आंखों में
सरेआम बिकते हैं
सबके सब
इज्जत की खाते-कमाते हैं
शीशे की दीवारों के
पीछे छुपे हुए