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ज़िंदगी तुझसे शिकायत कैसी / प्रमोद तिवारी

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ज़िंदगी तुझसे शिकायत कैसी
क्या नहीं तुझने दिया है मुझको
सब तो है, और जो नहीं है वो
मेरे ख़्वाबों में है, चाहों में है
बस यूं समझो मेरी बांहों में है
ज़िंदगी तुझसे शिकायत कैसी...

तूने सपने दिये पता है मुझे
तूने अपने दिये पता है मुझे
घर दिया, घर में खुशबुएं भर दीं
गम भी रहने दिये पता है मुझे
हां, अभी तुझसे एक बात
समझनी है मुझे
पास में जिनके पंख होते हैं
क्यों वे पिंजरे की कैद ढोते हैं
और बस टकटकी लगाए हुए
आसमानों के लिए रोते हैं
ये बताओ कि आसमां क्या है
पंख पिंजरे के दरमियां क्या है
ये हवा क्या है, ये धुआं क्या है
और जो
भी हुआ
हुआ क्या है...?