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बातें करूँ सुनो मैं / श्वेता राय

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बातें करूँ सुनो!! मैं, अपने उदास मन की।
टूटे हुये सपन की, भीगे हुये नयन की॥

हर साँझ याद आये, पल साथ जो बिताये।
अमृत समझ गरल को, थी कण्ठ से लगाये॥
वो दंश सह रही हूँ, पीड़ा सुनो तपन की।
टूटे हुये सपन की, भीगे हुये नयन की॥

जिसकी मधुर हँसी पर, दुनिया भुला रही थी।
बाहें पकड़ उसी की, खुशियाँ बुला रही थी॥
जलती विगत पलों से, मैं ताप बिन अगन की।
टूटे हुये सपन की, भीगे हुये नयन की।

यादें हुई पुरानी, बातें हुई पुरानी।
पर साथ चल रही, बीती हुई कहानी।
भूले न भूलती हूँ, मैं आँच उस छुअन की।
टूटे हुये सपन की, भीगे हुये नयन की॥