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प्रेम श्रृंगार / श्वेता राय

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आज मैं फिर प्रेम का श्रृंगार करना चाहती हूँ

आस का दीपक जला कर
गीत अधरों पर सजा कर
श्वास की लय में तुम्हारा नाम लिखना चाहती हूँ
आज मैं फिर प्रेम का श्रृंगार करना चाहती हूँ

नेह शब्दों में बसा कर
भावना को भी मिला कर
प्रेम में डूबा हुआ इक गीत लिखना चाहती हूँ
आज मैं फिर प्रेम का श्रृंगार करना चाहती हूँ

आँधियों में मुस्कुरा कर
भग्न तारों को सजाकर
आने वाले कल का मैं इतिहास लिखना चाहती हूँ
आज मैं फिर प्रेम का श्रृंगार करना चाहती हूँ...