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कीअं मां पहुचां पार पिरींअ ॾे / लीला मामताणी
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कीअं मां पहुचां पार पिरींअ ॾे।
तूं ही अची संभारि मुंहिंजा यार॥
1.
रात अंधारी, दूर किनारो।
ॿेड़ी पुराणी, कोन्हे सहारो।
साहिल पार उकारि, मुंहिंजा यार॥
कीअं मां पहुचां पार पिरींअ ॾे।
2.
घनघोर घटा, बिजली थी चमिके।
बादल गर्जनि, साहु थो सहिके।
छोलियुनि मां त छॾाइ, मुंहिंजा यार।
कीअं मां पहुचां पार पिरींअ ॾे।
3.
बाहि बिरह जी अन्दर में भड़िके।
राह आ मुश्किल दिल थी धड़िक।
तार मंझां अची तारि, मुंहिंजा यार।
कीअं मां पहुचां पार पिरींअ ॾे।