भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लग़ड़ी / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछड़ी पतंग
रंगा रंगीअ लग़ड़ीअ
खुलियल आकाश में
पेरु धरियो आहे
फूह जवानी
मन में मस्ती
कॾहिं
उतर खां ओभर
कॾहिं ओलह खां ॾखणु
सरि सराहट ऐं
खड़ खड़ाहट कंदे
ॼणु टहिकु ॾई
ध्यानु छिकाए
झटण जी इच्छा
पर...पर...
ॾोरि कटि जो
पको अंदेशो
रंगारंगी लग़ड़ी
नीले आकाश में
अलूप थी वेंदी