भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजब जिन्दगी / लक्ष्मण पुरूस्वानी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण पुरूस्वानी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अश्क गम तो दिना बेकरारी आ।
अजब हीअ जिन्दगी-वेचारी आ।।
देई वञे न दीहुं-बि उदासियूं।
रात त रूअन्दे रोज गुजारी आ।।
सूर हर जाइ ते मिलन्दा रहिया।
पर सौग़ात यार जी त प्यारी आ।।
डपु मौत जो त न आहे मगर
जिअरे त जिन्दगी प्यारी आ।।
तुहिंजी खामोशी-त घाए छदींदी
ॼणु त गोया तेज़ तिखी-कटारी आ।
जिन्दगीअ जी कथा- न मूखां पुछो।।
सही सूर केदा-संवारी आ।।
मुहिंजो अङण ई-वियो रहिजी सुको।
ॿाहिर त बारिश-अञां बि जारी आ।।
कहिंजो बि अहसान-छो खणां मां।
ॿोझु मुहिंजे मथां-अॻेंई भारी आ।।
ग़म जी मन्जिल-जेका आखरी थींदी।
हाणे उन सफर-जी तियारी आ।।