भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सौग़ात / लक्ष्मण पुरूस्वानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:25, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण पुरूस्वानी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तो दिनी आ फ़कत, ख्वाबनि जी सोग़ात
अखियुनि खे मगर अश्कनि जी सौग़ात

छा-छा न मिलियो आ मूंखे तुहिंजे प्यार में
दर्द आहूं ऐं तड़फण जी सोग़ात

सभि कुझु त दिनो मूं तोखे पहिंजो
दिनी मोट में तो दुखनि जी सोग़ात

दिल में रखियो तोखे नाजुक गुल जियां
पर बेदर्दी दिनी तो, कंडनि जी सोग़ात

भिटकां पियो अकेलो अन्धेरनि में
तो ई त दिनी, तन्हाइन जी सोग़ात

ॿोझु लॻे थी ज़िन्दगी तुहिंजे बिना
ज़रुरी आ ‘लक्षमण’ रहिमतुनि जी सोग़ात