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अहिसासु मुहब्बत जो / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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हर सूर जी अलग पहचान थींदी आ
ॻोढ़नि खे बि पहिंजी ज़िबान थींदी आ

साथु ग़म जो त रहन्दो आ हम साये जियां
खुशी कुझु लम्हनि जी मेहमान थींदी आ

सेई मटीन्दा आहिन रूख हवाउनि जो
इरादनि में जिनजे जान थींदी आ

ॿुधी हिन जमाने जूं अनेक गजलूं
खुद ग़जल खे बि थकान थींदी आ

आवाज दिल जो ॿुधे करू थो।
नज़र, हर इरादे जो बयान थींदी आ

न अहसास मुहब्बत जो हुणे जेकर
हर शय दुनियां में बेजान थींदी आ

कदंहि थीदा हुआ जे घरनि सां मन्सूब
उन्हनि रिश्तनि जी हाण दुकान थींदी आ