भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मशीन लाओ पापा / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अमरीका जाओ या चीन जाओ पापा।
होमवर्क करने की मशीन लाओ पापा।
सारा-सारा दिन तो
स्कूल में गुजरता।
होमवर्क करने को समय कहाँ बचता?
टीचरजी को जाकर समझाओ पापा।
काम नहीं पूरा हो
तो पिटाई झेलो,
कोई नहीं कहता कि
जाओ, भाई खेलो।
सोचो, सोचो, कुछ चक्कर चलाओ पापा।
होमवक्र करने की मशीन लाओ पापा।