भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पप्पू प्यारे जी! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुनिये पप्पू प्यारे जी!
ये क्या ढंग तुम्हारे जी?
घर आते ही जल्दी-जल्दी
बस्ता फेंका इधर-उधर,
ड्रेस उतारी, और डाल दी
गोल-मोल कर बिस्तर पर,
टाई, बेल्ट पड़े सब मारे-मारे जी।
कोई भी हो चीज, सभी को
इज्जत देनी पड़ती है,
अगर ढंग से रखो उसे तो
वो ज्यादा दिन चलती है,
पर हम तो समझा-समझाकर हारे जी।