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महँगे खिलौने / रमेश तैलंग
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रहने दो, रहने दो महँगे खिलौने,
जेब पर अपनी ये भारी पडेंगे।
इनसे भले हैं ये मिट्टी के घोड़े,
इन पर ही अब हम सवारी करेंगे।
छोटे हैं, फिर भी हम इतना समझते,
कैसे गिरस्थी के खर्चे हैं चलते,
जिद की जो हमने तो पापाजी अपने
न चाहते भी उधारी करेंगे।
रहने दो, रहने दो महँगे खिलौने,
जेब पर अपनी ये भारी पडेंगे।
मिट्टी के घोड़े हैं थोड़े पुराने,
पर कितने मन से दिए हमको माँ ने,
घरभर से छिपके, दुख-सुख में इनसे-
हम मन की बातें सारे करेंगे।
रहने दो, रहने दो महँगे खिलौने,
जेब पर अपनी ये भारी पडेंगे।