भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्त बनाएँ / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:22, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कंधे पर लादे एक बोरी
ढँढ रहे जो चोरी-चोरी
रद्दी कागज, टूटी बोतल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
अधनंगे हैं, धूल भरे हैं,
और पेट में भख भरे हैं,
लेकिन जिनके मन हैं कोमल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
सबकी होगी एक कहानी,
सुनें उन्हीं की आज जुबानी,
दुख-सुख बाँटे उनके दो पल,
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।
चेहरे इनके पीले-पीले,
इससे पहले, ये शर्मीले
हो जाएँ आँखों से ओझल
चलो, उन्हें हम दोस्त बनाएँ।