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एक बात बताओ / प्रकाश मनु

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मम्मी जी, एक बात बताओ,
मुझको बस इतना समझाओ।

क्यों छोटी-छोटी बातों पर
मुझको यूँ डाँटा करती हो,
गुस्से में भर मेरी बातों
को तो बस काटा करती हो।
क्या मैं बिल्कुल ही बुद्धू हूँ,
नहीं तुम्हारी हूँ क्या बेटी?
मम्मी, बस लेटी लेटी
इतनी-सी एक बात बताओ,
मुझको बस इतना समझाओ!

एक दिन गुड्डे-गुडिया का था
ब्याह रचाया तो ऐसा क्या,
बातें करते, चित्र बनाते
समय बिताया तो ऐसा क्या!
आखिर सीखूँगी सब केसे
पुस्तक-कीट अगर बन जाऊँ?
घोट किताबें क्या पी जाऊँ?
मुझको बस इतना समझाओ!

मम्मी, बचपन में तुम भी तो
करती थीं कितनी शैतानी,
गुट्टे खेले, छुपम-छुपाई
बतलाती थी कल यह नानी।
तो अब मुझको रोक रहीं क्यों,
बात-बात पर टोक रहीं क्यों?
मम्मी जी, यह बात बताओ,
मुझको बस इतना समझाओ!