भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा सुबह की / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खूब मजे से इठलाती है
नए-नए स्वर में गाती है,
सब पर जादू कर जाती है-
हवा सुबह की!
सूरज बरसाता जो सोना
रँगकर उसने कोना-कोना,
हँस-हँस जग पर लहराती है-
हवा सुबह की!
चीं-चीं चूँ-चूँ का गंुजान
चिड़ियों के ले मीठे गान,
हलचल मन में भर जाती है-
हवा सुबह की!