भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतने अच्छे बनो / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इतने ऊँचे उठो कि जैसे
पेड़ हवा में लहराए,
इतने ऊँचे उड़ो कि नभ में
कीर्ति-पताका फहराए।
ऐसी हो गति, जैसे आँधी
से सारा जग थर्राता,
ऐसे सजल बनो, बादल ज्यों
नन्ही बूँदें बरसाता।
इतने हो मजबूत कि जैसे
हिमगिरि की हैं चट्टानें,
लेकिन मन कोमल हो जैसे
झरनों के मीठे गाने।
इतना मीठा बोलो, जैसे
कोयल का है पंचम स्वर,
मन इतना फैला-फैला हो
जैसे यह नीला अंबर!
इतने गाने गाओ जिससे
हवा सुरीली हो जाए,
ऐसे तुम मुसकाओ, वन में
कली-कली हँस, खिल जाए।
इतने अच्छे बनो कि जैसे
धरती सबको देती है,
नहीं माँगती कुछ भी हमसे-
सबको अपना लेती है!