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खण्डहर उगे गुलाब / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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गुलाब उग आया
खण्डहर पर।
अनगढ़ माटी की
कई-कई पर्तें,
अननुकूल कंकड़ की
अव्याहत शर्तें;
अनचाहे बोझ पत्थरों के
हटा दिये सिर से
धूप पहन-
उमग रहा जी भर।
तना...तना
पत्तियाँ हरी-
कटाव नुकीले,
अर्थ-कसे डण्ठल
समरस पंखुड़ियाँ
रँग चटकीले,
मुक्त: चेतना हुई फिर से
चर्चित है रूप-गंध
घर-घर।