भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इस धरती ने पेड़ उगाए,
इस धरती ने अन्न दिया।
इस धरती ने हमें दिये फल,
देकर फूल प्रसन्न किया।
इस धरती ने नदी बहाई,
बहती अमृतधारा बन।
जिसका जल मानव, पशु-पक्षी
हर प्राणी का जीवन।
इस धरती ने खड़े किये हैं,
नभ छूने वाले पर्वत।
जिनके जल के शीतल झरने,
हमको हैं जैसे शर्बत।
इस धरती पर राह बनी है,
बने इसी पर सुन्दर घ्ज्ञर।
इस धरती पर रेलें चलतीं,
कार, बैलगाड़ी, मोटर।
इस धरती पर पैदा होकर,
और खेलकर बढ़ते हम।
इस धरती पर ही जीवन में,
बढ़ते हम हर एक कदम।
यह धरती जाने कब से है?
पर यह धरती है अचरज।
सुन्दर लगती है यह धरती,
पाकर वासन्ती सज-धज।