Last modified on 20 फ़रवरी 2017, at 12:26

हमने डरना कभी न जाना / श्रीप्रसाद

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमने डरना कभी न जाना, आँधी से, तूफान से
देखो, हम बढ़ते जाते हैं, कैसे अपनी शान से
काँटे आते, उन्हें हटाते, तुरत बनाते राह
बड़े-बड़े रोड़ों की भी, करते न कभी परवाह
सिर अपना ऊँचा रखते हैं, हरदम हम अभिमान से
हमने डरना कभी न जाना, आँधी से, तूफान से
दिन में राह बताता सूरज, फिर जब आती रात
चाँद चाँदनी बिखराता है, करता हमसे बात
हम ऐसे बढ़ते जाते हैं, राह देखते ध्यान से
हमने डरना कभी न जाना, आँधी से, तूफान से
मंजिल पर ही रुकना हमको, हो कितनी भी दूर
लंबी राह नहीं कर सकती, हमें कभी मजबूर
हमको अपनी मंजिल प्यारी ज्यादा अपनी जान से
हमने डरना कभी न जाना, आँधी से, तूफान से
पैरों में छाले पड़ते हैं, पर न टूटता ध्यान
हमें प्रेरणा हरदम देता है, मंजिल का ज्ञान
जहाँ पहुँच जाएँगे हम यों, चलते-चलते आन से
हमने डरना कभी न जाना, आँधी से, तूफान से