भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भक्काटे / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीली, लाल, गुलाबी, नीली
भक्काटे
ऊपर उड़ती हैं चमकीली
भक्काटे
किसकी सबसे ऊपर पहुँची
आसमान छूती है
इसका मंझा कितना अच्छा
कितनी मजबूती है
कटी एक तो शोर हो रहा
भक्काटे

हो-हो चारों ओर हो रहा
भक्काटे

उड़ती हुई पतंगें सुंदर
पास-पास आती हैं
गले-गले आपस में जैसे
ऊपर मिल जाती हैं
ऊपर करतीं सैरसपाटे
भक्काटे

आसमान को मिलकर पाटा
भक्काटे

लिए परेती बिलकुल छोटी
निन्नी, दौड़ी आई
रंगबिरंगी वह पतंग भी
छोटी-सी ही लाई
लिए पतंग खड़ी चिल्लाती
भक्काटे

वह पतंग क्यों नहीं उड़ाती
भक्काटे

आसमान में मेला-सा है
सज करके सब आए
यह भारी उत्सव है, सब हैं
ऊपर आँख लगाए
किसकी नीचे फर-फर आई
भक्काटे

पेच लड़ाया किसने भाई
भक्काटे

छोटी-छोटी, बड़ी-बड़ी हैं
उड़ा रही है टोली
कहाँ गई, अब नहीं दीखती
सुन पड़ती है बोली
कटी पतंग लूटते हैं सब
भक्काटे

छीना-झपट, छूटते हैं सब
भक्काटे।