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डूब रहे / श्रीप्रसाद

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डूब रहे पर्वत के पीछे
धीरे-धीरे सूरज भाई
दिन भर हमें रोशनी दी है
दिन भर है धरती चमकाई

ठीक समय पूरब में आकर
अपना लाल रंग बिखराया
चिड़ियाँ जागीं, फूल खिल गए
आकर किसने उन्हें जगाया
किरन-किरन झूली ऊपर से
नीचे आकर के मुसकाई

गाय, बैल बकरी सब जागे
जागे भालू, बंदर वन में
शेर, लोमड़ी हाथी जागा
अपने आप हुआ यह मन में
सपने गए, बुरे या अच्छे
नई नवेली बेला आई

सूरज भाई ईश्वर ही हैं
दुनिया नई रचा जाते हैं
आलस कभी नहीं करते हैं
हम कुछ करते ही पाते हैं
फसलें पकतीं फल पक जाते
कली-कली आकर चटकाई

सूरज भाई, कल फिर आना
कहना क्या, तुम आओगे ही
शाम सुनहली फिर आएगी
इसी तरह फिर जाओगे ही
कब से है यह, मुझे किसी ने
बात नहीं अब तक समझाई
डूब रहे पर्वत के पीछे
धीरे-धीरे सूरज भाई।