भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया को चमकाये चाँद / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सागर में लहराए चाँद
तालों पर मुसकाये चाँद
नदिया की कलकल धारा में
झलमल रूप दिखाये चाँद

सूरज डूबे, आये चाँद
और रोशनी लाए चाँद
बाग-बाग में, फूल-फूल पर
खिल-खिलकर बिछ जाए चाँद

पेड़ों पर झुक आए चाँद
पत्तों पर शरमाए चाँद
छत पर छिटक-छिटककर फैले
आँगन में भर जाए चाँद

मुझको रोज बुलाए चाँद
लेकिन पास न आए चाँद
खिड़की से घुसकर कमरे में
खिल-खिल-खिल आ जाए चाँद

आसमान में आये चाँद
धरती खूब हँसाए चाँद
चम-चम-चम रोशनी बिछाकर
दुनिया को चमकाए चाँद।