भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विद्यालय / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक पेड़ पर विद्यालय हो
एक पेड़ पर खाना
डाली-डाली पर हम बैठें
वहीं पढ़ें मिल करके
बातें करें, हँसे हम बच्चे
फूलों से खिल करके
बजे वहीं पढ़ने का घंटा
कोयल गाये गाना
वहीं पास में एक नदी हो
उसके तट पर जायें
जब खाली हों, नैया ले ले
हैया उसे चलायें
दिनभर चले वृक्ष विद्यालय
तब हो घर पर जाना
अध्यापक भी चढ़ें पेड़ पर
कुरसी वहीं लगायें
जब-तब कहें कहानी, जब-तब
कोई गीत सुनायें
पेड़ों के नीचे हम खेलें
हमको मौज मनाना
बैठें पेड़ों के नीचे हम
वहीं लगे फिर कक्षा
जो देखेगा, वही कहेगा
विद्यालय है अच्छा
ऐसा ही विद्यालय हमको
अपना एक बनाना।