डर / गुंजनश्री
बहुत दिन पर भेंट भेल
अप्पन माटि आ पानी सँ
माटि जरि रहल छैक
सुरुजक धाह सँ
आ पानी लय करैत छैक
चीत्कार, खेत-पथार सब
सुनै छियैक जे पहिलो कहियो भेल छलैक
एहने सन रौदी
आ ओहि मे हाक्रोश क' उठल छल सब कियो
आ फेर रौदी बदलि गेलैक अकाल मे
आ परि गेलैक अकाल अन्न के
गामक आरि पर बैसल एकटा बाबा
आकाश दिस ताकि बजैत छलाह-
जौं पानी नै देबहक त' कोना हेतैक अन्न
आ अन्न नहीं हेतैक त' मरि जायत
भुखल पियासल सब लोक
तखन तोरा अधिष्ठित के करत हौ?
के चढ़ेतह परसाद आ अछिञ्जल?
कत्तः स' हेतह तोहर निमेरा
सोलहो देबान के
कोना खेपबह कलियुग?
सुनै छि काल्हि हमरा अयालक बाद
खूब भेलैक अछि पानि
बोदम-बोदा भ' गेलैक आरि-धुर
बुझा परैत छैक धरती परहक लोक जकाँ
भगवानो आब डेरैत छथिन
अप्पन आ अप्पन परिवार के
भुखल रहबाक डर स'।