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घुँघट चुक्क ओ सज्जणा / बुल्ले शाह

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घुँघट चुक्क ओ सज्जणा, हुण शरमाँ काहनूँ रक्खीआँ वे।
जुल्फ कुंडल ने घेरा पाया,
बिसीअर<ref>नाग</ref> हो के डंग चलाया।

वेख असाँ वल्ल तरस ना आया, करके खूनी अक्खीआँ वे।
घुँघट चुक्क ओ सज्जणा, हुण शरमाँ काहनूँ रक्खीआँ वे।

दो नैणा दा तीर चलाया,
मैं आजिज़ दे सीने लाया।

घायल करके मुक्ख छुपाया, चोरिआँ एह किन दस्सीआँ वे।
घुँघट चुक्क ओ सज्जणा, हुण शरमाँ काहनूँ रक्खीआँ वे।

बिरहों कटारी तूँ कस्स के मारी,
तद मैं होई बेदिल भारी।

मुड़ नाँ लई तैं सार हमारी, पतिआँ<ref>पत्र</ref> तेरीआँ कच्चीआँ वे।
घुँघट चुक्क ओ सज्जणा, हुण शरमाँ काहनूँ रक्खीआँ वे।

नेहुँ लगा ने मन हर<ref>जीत</ref> लीता,
फेर ना आपणा दरशन कीता।

ज़हर प्याला मैं एह पीता, साँ अकलां मैं कच्चीआँ वे।
घुँघट चुक्क ओ सज्जणा, हुण शरमाँ काहनूँ रक्खीआँ वे।

शब्दार्थ
<references/>