मैनूँ कौण पछाणे,
मैं कुझ हो गई होर नी।
हाजी मैनूँ सबका पढ़ाया,
ओत्थे गैर न आया जाया,
मुतलक<ref>वाहिद</ref> ज़ात जमाल<ref>सुन्दरता</ref> विखाया,
वहदत<ref>एक ही</ref> पाया जोर नी
मैं कुझ हो गई होर नी।
अव्वल होके ला मकानी
ज़ाहिर बातन दिसदा जानी,
रही न मेरी नाम निशानी
मिट गया झगड़ा शोर नी
मैं कुझ हो गई होर नी।
प्यार आप जमाल विखाली,
होए कलंदर मस्त मवाली,
हंसाँ दी हुण वेख के चाली,
भुल्ल गई कागाँ टोर नी।
मैं कुझ हो गई होर नी।
शब्दार्थ
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