भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोनक बात / मनोज शांडिल्य

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज शांडिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एहि सँ पहिने कि
कुरानक आयत नहि पढ़ि सकबाक कारणें
रेति देल जाय हमर कण्ठ..

एहि सँ पहिने कि
कोनो अभिशप्त सड़क पर धार्मिक विस्फोट में
भ’ जाय हमर देह क्षत-विक्षत..

एहि सँ पहिने कि
पाबनिक समय मे कोनो रेल टीसन पर
सहस्रो गोली सँ छेदा जाय हमर अंग-प्रत्यंग..

हम कहि दी अपन मोनक बात –
मस्जिदक गुम्बद पर देखाइत छथि हमरा
तपस्या मे ध्यानस्थ महादेव
आ सीढ़ी पर देखाइत छथि योगीराज कृष्ण
दैत अर्जुनकेँ गीताक महाज्ञान..

लिअ, छुआ गेल अहाँक देवालय
आब रेतै जाउ बिहुँसैत हमर कण्ठ
करै जाउ हमर देहक खण्ड-खण्ड!