भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोठुल्ला / मनोज शांडिल्य

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज शांडिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमर अंतर्मन मे कतहु
सदति पजरल रहैत अछि
इर्खाक एक प्राचीन चूल्हि
गोठुल्ला सेहो
रहैत अछि भरले

डाहक किरासन ढारि-ढारि
धधकओने रहैत छी एकरा
सुआदि-सुआदि खाइत रहैत छी
झरकल, कार्बोनाइज़्ड कंद-मूल
आ बदलैत रहैत अछि हमर प्राणवायु
कॉन्सेन्ट्रेटेड एसिड मे
नचैत रहैत अछि कोटिशः रक्त-कोशिका
निछछ मदमत्त भेल

देहक पोर-पोर सँ
ठाँहि-पठाँहि
ठाम-ठाम
छोड़ैत रहैत छी ई एसिड
आ होइत रहैत छी
आत्मविभोर
चलैत रहैत अछि साँसक
आरोह-अवरोह

अभिभूत छी हम
सगरो देखि रहल छी
छटपटाइत संवेदनाक पसार

निरंतर भ’ रहल अछि
हमर गोठुल्लाक विस्तार!