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उन्नीसवीं किरण / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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‘‘रामू’’

झालर-झाँझ-मृदंगों की मीठी पावन ध्वनि सुनकर
उठ दौड़ा रामू मन्दिर की ओर मगन-मन होकर।
सन्ध्या की आरती-अर्चना का आरम्भ हुआ था
दर्शन-हित समुदाय सहóों का एकत्र हुआ था।
कोई फल, कोई पकवान, मिठाई कोई लाया
किसी-किसी ने घी के दीपों से था थाल सजाया।
खाली हाथो आने वाला शायद ही कोई था
पावन तिथि थी आज, कुछ न कुछ लाया सब कोई था।
हाँ, रामू खाली हाथों था निश्चय एक अकेला
देख रहा था प्रेम-मगन होकर भक्तों का मेला।
सभी जा रहे थे मन्दिर में पूजा अर्पित करने
साथ गया रामू भी उर के फूल समर्पित करने।
जन-जन कहता हाथ जोड़ ‘भगवान् राम की जय हो’
खड़ा पुजारी उच्च स्वरों में कहता ‘जय हो, जय हो।’
मन्दिर की दीवालों से उठती थी ध्वनि ‘जय-जय हो’
किन्तु मौन-विह्वल रामू ही का उर कहता ‘जय हो।’
भक्तो की पूजा भगवान्-चरण में चढ़ती जाती
घन्टे-झालर-झॉझ-मृदंगों की ध्वनि बढ़ती जाती।
विह्वल रामू रुक न सका, पा आज देव के दर्शन
चीर भीड़ दौड़ा, लिपटा जाकर चरणों में तत्क्षण।
गया उसे पहचान पुजारी, धक्का दे चिल्लाया
”यह रामू मेहतर है, कैसे मन्दिर में घुस आया?“

बन्द हो गये घन्टे-झालर, मूक भीड़ भीसुनकर
दूर सभी हट गए, खून आँखों में भरा उतर कर।
”अरे-अरे यह तो सचमुच रामू है, रामू मेहतर
मारो-मारो, इसे घसीटो, खींचो, कर दो बाहर।“
बाहर ले जाकर उससे बोला यों गर्ज पुजारी
”क्यों रे नीच! नष्ट कर दी क्यों पूजा आज हमारी?
किसने तुझ से कहा कि मन्दिर के अन्दर घुस आना
छूकर रे भगवान-मूर्ति श्रद्धा के सुमन चढ़ाना!
प्यास तुझे यदि थी दर्शन की तो बाहर से करता
देख, वहाँ वह बना झरोखा, उस पर जाकर मरता।
मन्दिर की दीवाल तोड़ इमने उसको बनवाया
मरता नीच! वहाँ जाकर क्यों मन्दिर में घुस आया?
पावन प्रतिमा आज अपावन कर दी छूकर कर से
प्राण-प्रतिष्ठा की थी हमने वेद-मंत्र के बल से।
प्राण-हीन हो गई आज प्रतिमा पावन मन्दिर की
नीच! उठा ले जा उसको तू, देर न कर पल-भर की।“
रामू बोला हाथ जोड़ नत नयनों में भर पानी
”क्षमा मुझे करना हे ब्राह्मण, टूटी-फूटी वाणी।
तुम मानव हो फिर भी जीते हो मेरे छूने से
वह ईश्वर है, कैसे मर सकता मेरे छूने से?
प्राण-हीन तुम हुए नहीं, ‘वह’ हुआ असम्भव है यह
तुम अविनश्वर, ‘वह’ नश्वर है,कैसे है सम्भव यह?
वेद-मंत्र जानता नहीं मैं, तर्क नहीं करता हूँ
भोले-भाले अपने मन की बात प्रकट करता हूँ।
ठोकर मार पुजारी बोला ”मुँह-जोरी करता है
अरे! ठहर जा नीच! अभी मेरे हाथों मरता है।“
इतना कहना था कि भक्त टूटे उस पर अरराकर
राम-राम कहता ‘रामू’ मिल गया राम में जाकर।