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कह रहे हो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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कह रहे हो ओस की बूँदें इन्हें तुम,
मत करो अपमान कह कर यों
किसी के आँसुओं का।
तुम नहीं पहचान पाये हो सखे,
अब तक इन्हें
ये अश्रु हैं आकाश के
जो रात भर रोता रहा,
संसार जब सोता रहा।
जून, 1960