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खूबसूरत घर / कुमार कृष्ण

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खूबसूरत घरों में
बहुत कम रहते हैं खूबसूरत लोग
खूबसूरत घरों के दरवाजे
कभी नहीं थपथपातीं अँगुलियाँ
वे फाँक-भर खुलते हैं घंटी की आवाज़ पर
हो जाते हैं बन्द खुद-ब-खुद


बहुत कम हँसते हैं खूबसूरत घर
वे जानते हैं-
ठहाके लगाने वाले लोग होते हैं जंगली
छोटी-छोटी खुशियों का मनाते हैं उत्सव


खूबसरत घरों में नहीं रहते-
पीतल के लोटे, काँसे के कटोरे
मिट्टी के घड़े, खील-बताशे
वहाँ नहीं रहती गंगाजल की बोतल
गीता, रामायण
राधा-कृष्ण-शिव के कैलेण्डर
खूबसरत घरों में नहीं होते झरोखे
वहाँ से नहीं आती कोदे की गन्ध
वहाँ नहीं पकता गुड़ का हलवा
मक्की की रोटी
खूबसरत घर नहीं पकाते छाछ में चावल

खूबसरत घरों में
कोई नहीं करता किसी का इन्तजार

खूबसरत घरों में
उगे रहते हैं तमाम तरह के विदेशी फूल
खूबसरत घरों में नहीं उगता तुलसी का पौधा
खूबसरत घरों के लोग करते हैं
मनुष्य से अधिक अपने सामान से प्यार
तभी तो होते हैं खूबसरत घरों के कई-कई पहरेदार

खूबसरत घर
खूबसरत लगते हुए भी
नहीं होते खूबसरत

खूबसरत घरों में नहीं होता पुआल का बिस्तर
वहाँ नहीं सुनते बच्चे
लालटेन की रोशनी में दादी की कहानियाँ
वे नहीं जानते गुदड़ी के सपनें
सुना है-
"नींद न आने की बीमारी से
बीमार होते हैं तमाम खूबसूरत घर।"