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बहुत कुछ ज़रूरी है / कुमार कृष्ण

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नमक और रोटी नहीं है आदमी का रहस्य
उसके पास होनी चाहिए बच्चों की शरारतें
बुजुर्गों की यादों का बटुआ
प्यार और नफरत के रंग-बिरंगे छाते।

उसके पास होने चाहिए बेशुमार दरवाजे
जो खुल जाएँ सिर्फ एक बार खटखटाने पर।

उसके पास होने चाहिए छोटे-छोटे झूठ
छोटे-छोटे पाप के छोटे-छोटे तकिये
उसके पास होनी चाहिए
ईर्ष्या और द्वन्द्व की खटिया।

टेड़े-मेढ़े सम्बन्धों की थिगलियों का ठाल्कु<ref>फटे-पुराने वस्त्रों से बच्चों को सोने के लिए बनाया गया तलाईनुमा वस्त्र</ref>
उसके पास होनी चाहिए मातृभाषा की बारहखड़ी
हर वक़्त होने चाहिए उसके पास
कोरे-कोरे कागज़
जिस पर लिखता रहे वह
आने वाले कल की किताब।

शब्दार्थ
<references/>