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कविता की कोख / कुमार कृष्ण

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कविता के घर में रहने वाला मनुष्य
लौट जाना चाहता है बार-बार कविता के पास
उसे पूरा यकीन है-
नहीं घिसते शब्द, नहीं टूटते शब्द
मरते नहीं शब्द, शब्द नहीं होते क्षीण
कविता की कोख से बार-बार जन्म लेने पर
हृष्ट-पुष्ट होते हैं शब्द।