भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद / कुमार कृष्ण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 8 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद तुम बहुत बड़े ठग हो
मेरे माँ-बाप को ठगते आये बरसों से
पूर्णिमा के दिन

पत्नी को ठगते रहे करवा चौथ के दिन
अपनी इच्छानुसार
नाम तक चुनने की आज्ञा नहीं दी तुमने किसी को
सुकान्त भट्टाचार्य और मुक्तिबोध जैसे सिपाहियों ने
जितनी बार तुम्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की
 तुम कालिदास और पन्त की वर्दी पहनकर आए
और चकमा देकर चले गए
तुम दो बूँद पानी तो पिला नहीं सकते
दे नहीं सकते मुट्ठी भर गेहूँ या चावल
तुम्हारे पास क्या है एक ऐसा खेत
जहाँ मैं चला सकूँ अपने एक जोड़ी बैल
क्या है तुम्हारे पास एक ऐसा छप्पर
जहाँ मैं कर सकूँ प्यार
जला सकूँ थोड़ी-सी आग
गुनगुना सकूँ
इस सदी की भाषा का अन्तिम गीत।