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उन्माद / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
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उमड़ पड़ शीघ्र प्रबल-उन्माद!
सिन्धु के वक्षस्थल को चीर
हिला अवनी-तल-हृदय-अधीर
कुचल पैरों से द्वेष-विषाद
उमड़ पड़ शीघ्र प्रबल-उन्माद!
बहादे जहर-भरा तूफ़ान!
विश्व-तरु के प्रसून-कोमल
तोड़, दे पाट नग्न-भू-तल!
सूर्य-सा चमका क्रान्ति-कृपाण
बहादे ज़हर भरा तूफ़ान!
बनादे नन्दन-विपिन मसान!
बंद कर दे कोयल के गीत
छेड़ निज भैरव-राग अजीत!
न वैभव हो, न रहे अभिमान
बनादे नन्दन-विपिन मसान!
सुकवि की बज्र-कलम को चूम!
गगन में फैला दे तत्काल
प्रलय के विप्लव-बादल-जाल;
मस्त हो यौवन-मद में झूम
सुकवि की बज्र-कलम को चूम!
28.3.28