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युगांतरकारी / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

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हो सावधान! अब आई मेरी बारी!
चमकी आँखों में गौरव की चिनगारी!
चमकी आँखों में गौरव की चिनगारी!

फटता अंबर हुंकार-नाद होता है!
युगनेत्र नराधम मींच-मींच रोता है!
वेदना-विश्व में भीषण प्रलय मचा है।
यह यज्ञ भयानक!-किसने बोल, रचा है?

बिजली कड़की या चमकी रक्त-कटारी?
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!

कालिमा पाप-रजनी की घोर हटा के!
आरहा प्रभात खून की नदी नहा के!
है द्वादश-रवि ने उदय लिया अंबर में!
होगा जग भस्मीभूत, ठहर, पल-भर में!

भूतल पर उथल-पुथल होवेगी भारी!
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!

नस-नस मैं बिजली दौड़ रही है भीषण!
हैं आज बने ज्वाला जीवन के कण-कण!
छिपकर बैठी है विभीषिका ”आही“ में!
भरती स्वतंत्रता अंगारे चाहों में!

जग गई हृय की आज शक्तियाँ सारी!
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!

झंझा-समीर संदेश सुनाता मेरा!
कर अट्टहास बादल यश गाता मेरा!
उठ बड़वानल खौलाता लहू बदन का!
मैं निर्भय चक्र चलाता दुष्ट-दमन का!

मैं कुरुक्षेत्र-संचालक कृष्ण-मुरारी!
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!

मेरी आशाएँ चमक रहीं तारों में!
मैं झूम रहा पागल-सा उद्गारों में!
मैं दूँगा खोल स्वर्ग का द्वार चिरंतन!
मैं दौड़ बुलाऊँगा सुखमय-परिवर्तन!

मैं हूँ अजेय-दुर्जेय सृष्टि-संहारी!
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!

मैं दूँगा रोक प्रवाह अतल-सागर का!
मैं गर्व करूँगा चूर-चूर शंकर का!
मैं पटक तोड़ दूँगा शशि-अमृत-प्याला!
सम्मुख आवेगा कौन?-लिये हूँ भाला!

मैं हूँ विराट विभ्राट युगातंरकारी।
हो सावधान! अब आई मेरी बारी!
19.1.29