भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटा हुआ अहम् / योगेन्द्र दत्त शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसी हवा चली, फूलों की
पंखुरी गई सहम!
जीवन हुआ विसंगतियोंसे
टूटा हुआ अहम्!

धूमिल होने लगे इरादे
ठंडा पड़ा उछाह
झुलसाता रहता है पल-पल
भीषण अंतर्दाह

कौन लगाने आये, रिसते
घावों पर मरहम!

अंधकार से समझौते में
व्यस्त हुआ हर रूप
लाठी टेक चला करती है
अब तो अंधी धूप

जाल-पूरती मकड़ी की है
चर्चा आम-फहम!

चंदन-वन से लगी निकलने
जहरीली दुर्गन्ध
संधि-पत्र वाले हाथोंने
तोड़ दिये अनुबंध

खंडित होने लगे अचानक
मन में पले वहम!