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टूटा हुआ अहम् / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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ऐसी हवा चली, फूलों की
पंखुरी गई सहम!
जीवन हुआ विसंगतियोंसे
टूटा हुआ अहम्!
धूमिल होने लगे इरादे
ठंडा पड़ा उछाह
झुलसाता रहता है पल-पल
भीषण अंतर्दाह
कौन लगाने आये, रिसते
घावों पर मरहम!
अंधकार से समझौते में
व्यस्त हुआ हर रूप
लाठी टेक चला करती है
अब तो अंधी धूप
जाल-पूरती मकड़ी की है
चर्चा आम-फहम!
चंदन-वन से लगी निकलने
जहरीली दुर्गन्ध
संधि-पत्र वाले हाथोंने
तोड़ दिये अनुबंध
खंडित होने लगे अचानक
मन में पले वहम!