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पानी में सूर्य-किरण टूटी / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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रेती पर एक नाम पढ़ के
आ पहुंचा सूरज रथ चढ़ के!
मौसम ने गंध-पाश खोल दिया
खुशबू को सांसों में घोल दिया
उपवन में मालिन ने पांव धरे
एक फूल तोड़ लिया बढ़ के
हवा मंद-मंद मुसकरा गई
ओसीले स्वप्न हरहरा गई
कलियों ने रस की बौछारें कीं
भौंरों पर व्यर्थ दोष मढ़ के!
तालों में जलमुर्गी झूम गईं
पांखुरियां कमलों की चूम गईं
सूर्य-किरण टूट गई पानी में
सतरंगी रूप खूब गढ़ के!
भाव-विहग चलपड़े उड़ान पर
कल्प-तीर चढ़ गये कमान पर
कविता के पंख कुलमुला गये
छंदों के अंग-अंग फड़के!