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आचमन सजल आँखों वाले / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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लौट गई सोनपरी द्वारे से
दिन आये कैसे बनजारे-से!
दस्तकें हवाओं ने दी थीं
पर टूट गईं
तिनकों-सी बिखर गईं आवाजें
अपने संदर्भों से
छूट गईं
कोई भी हुंकारा नहीं हुआ
जोगी के टूटे इकतारे से!
निर्जल उपवासों के तर्पण
सब रीत गये
आचमन सजल आंखों वाले
पलकों पर जाने क्या
चीता गये
बट, पीपल रागारुण नहीं हुए
रूठी है तुलसी भिनसारे से!
निश्छल विश्वासों का आखिर
भ्रमभ्ंाग हुआ
मोहक गंधों वाला ज्योति-कलश
झांका, तो निकला
बदरंग धुंआ
भहराकर उल्का-से टूट गिरे
थे अविचल जो कल ध्रुव तारे-से!